वर्तमान सदी सूचना एवं जनसंचार प्रौद्योगिकी के नाम है। इस प्रौद्योगिकी के विकास, उपयोग एवं संचार में विद्यालयों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि विद्यालय इनका उपयोग कर, इसके विकास को गति प्रदान करते हैं। भूमंडलिय एवं उदारीकरण की वर्तमान पीढ़ी में प्रत्येक व्यक्ति त्वरित जानकारी हेतु सूचना एवं जन संचार के साधनों का प्रयोग कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करके शिखर पर पहुँचना चाहता है। संचार की प्रक्रिया व्यक्ति के आत्मिक एवं सांस्कृतिक विकास में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रगतिशील सामाजिक विकास में वा नैतिक आदर्शो के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही मेरे और आपके विचारों व अपेक्षाओं की जानकारी का माध्यम है व यही हमारे उद्देश्यों, लक्ष्यों को आप तक ले जाने का भी माध्यम है।
गांधी इंटर कॉलेज की बेवसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत अभिनन्दन एवं आभार है। मैं पूरे विश्वास पूर्वक आपको यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ मैं व्यक्ति से व्यक्तिगत सम्पर्क के माध्यम से ही सतत अग्रसर रहने की चेष्टा करता रहा हूँ न कि पोस्टर, बैनर या अन्य किसी माध्यम से। आज सूचना प्रौद्योगिकी ने हमें एक साथ अनेकानेक लोगों से सीधे जोड़ दिया है। मुश्किलें हर लक्ष्य के मार्ग में जरूर आती है परन्तु दिनकर जी कि पंक्तियाँ मेरे हौंसले को बढ़ाती रही है “मुश्किले दिल के इरादे आजमाती है स्वप्न के निगाहों से हटाती है, हौसला मत हार, गिरकर मुसाफिर ठोकरें इंसान को चलना सिखाती है”।शिक्षा, बालक में अन्तर्निहित गुणों का विकास करती है। समस्त ज्ञान मनुष्य के अन्तर में अव्यवस्थित है, उसे केवल जागृति व प्रबोधन की आवश्यकता है और वास्तव में बस इतना ही शिक्षक का कार्य है। मेरा उद्देश्य यही रहा है कि बालक को इस प्रकार शिक्षा दी जाए कि उसका चरित्र बने एवं बुद्धि का विकास हो उसकी मानसिक शक्ति का विकास हो और वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके। इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मातृभाषा हिन्दी माध्यम के साथ-साथ आंग्ल भाषा को भी शिक्षा का माध्यम आप सभी के सुझावों व मांगों को ध्यान में रखकर अपनाया गया है।
शिक्षा का उद्देश्य मानव निर्माण है, इसी कारण माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम एवं पर्यटन के साथ-साथ खेलकूद, संगीत एवं शारीरिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है। शिक्षण कार्य में अत्याधुनिक शिक्षण प्रविधियों को पूर्ण स्थान दिया गया है, इसके लिए प्रोजेक्टर आदि को भी व्यवस्थित किया गया है।
शिक्षक ‘शिक्षा’ का केन्द्र बिन्दु होता है और इसी कारण ऐसे शिक्षकों का चयन किये जाने का प्रयास किया जाता है जो अपनी सारी शक्ति शिक्षार्थी को ज्ञान देने में लगा सकंे। इसके लिए शिक्षक के विषय ज्ञान, उसके शिक्षण कौशल व उसके चारित्रिक गुणों पर विशेष बल दिया जाता। मुझे यह व्यक्त करने में गर्व भी महसूस होता है कि हमारे शिक्षक धन, नाम, यश की अपेक्षा त्याग की भावना से ओत-प्रोत हैं।
शिक्षक के साथ-साथ हम शिष्य से भी अपेक्षा रखते हैं कि उसके हृदय में उच्च आदर्शों के लिए व्याकुलता होनी चाहिए, उसको गुरू में अटूट विश्वास होना चाहिए, उसमें स्वतन्त्र चिन्तन की शक्ति के साथ-साथ नम्र एवं विनयशील व कर्तव्य परायण होना चाहिए। इन गुणों के विकास के लिए विद्यालय भी निरन्तर प्रयत्नशील रहता है। इन सब बातों के साथ मेरा लक्ष्य बच्चियों की शिक्षा हेतु विद्यालय में समुचित, सुरक्षित शिक्षा का वातावरण बनाये रखना मूल प्राथमिकता है।
अन्ततः आपके विचारों, सुझावों एवं मार्गदर्शन की प्राप्ति की अपेक्षा के साथ।
आपका शुभेच्छु
प्रधानाचार्य
डा0 लाल प्रताप सिंह
एम.ए., बी.एड., एम.पी.एड., पी.एच.डी.,
अंतर्राष्ट्रीय एथलिट